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मई दिवस

कंधों पर ढोते-ढोते भार, राष्ट्र निर्माण कर जाते हैं।
सुबह से शाम तक भूखे-प्यासे रह जाते हैं।
बासी रोटी और सूखी चटनी खाकर अपनी भूख को मिटाते हैं।
धूल मिट्टी में काम करते-करते ख़ुद भी मिट्टी में सन जाते हैं।
ख़ुद झोपड़ी में रहकर दूसरों के लिए बंगला बनाते हैं।
पूरा दिन मेहनत कर अपना पेट पालते हैं। 
जी तोड़ मेहनत कर दो पैसे कमाते हैं।
भरी दोपहरी में काम कर वे जब थक जाते हैं ।
पल दो पल विश्राम कर फिर से काम में लग जाते हैं।
फटे पुराने कपड़ों में ही अपनी जिंदगी गुजारते हैं।
कभी-कभी तो मजबूरी के कारण अपने बच्चों को भी संग ले आते हैं।
राष्ट्र के निर्माता होकर भी मजदूर उचित सम्मान नहीं पाते हैं।
प्रतियोगिता हेतु
संजना पोरवाल

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